Monday, January 29, 2024
दीक्षा ( प्रेरक प्रसंग )
शिक्षाकाल समाप्त हुआ तो गुरु ने शिष्य से कहा, 'आज तुम पूर्ण विद्वान हुए । अब तुम्हे अपने कर्तव्यमार्ग पर चलना है। विद्यालय छोड़ने से पूर्व तुम पूरा एक दिन मेरे साथ बिताओ। जहां - जहां मैं जाऊं, तुम मेरे साथ चलो।' शिष्य गुरु का अनुसरण करने लगा। काफी दूर चलकर वे खेतो मे पहुंचे। देखा, एक किसान अपनी क्यारियों को सींचने में व्यस्त था। वे उसे देखते रहे, परंतु किसान ने उनकी ओर आंख उठाकर भी न देखा। वह अपने काम मे लगा रहा। दोपहर ढले वे शहर में घुसे। वहां पर उन्होंने देखा कि एक लुहार खोल पीट रहा है। काया पसीने से तर - बतर हो गई है। गुरु - शिष्य उसे देखते रहे पर लोहार को उन्हें देखने का अवकाश कहां ? वे आगे बढ़ गए। रात को वे एक सराय में पहुंचे। वहां उन्होंने तीन पथिको को बैठे देखा । वे पूरी तरह थके हुए दिखाई देते थे। उन्हें देखकर गुरु ने शिष्य से कहना प्रारंभ किया, ' तुमने देखा, कुछ पाने के लिए अपने में से कितना देना होता है ? किसान तन - मन लूटाता है, तब कहीं खेत फलता है, लुहार शरीर सुखा देता है, तब धातु सिद्ध होती है और यात्री अपने को निशेष कर देता है, तब मंजिल आती है। तुम ज्ञानी हुए। अब अपने कर्मो से ज्ञान की क्यारियां सिंचो, जीवन की आंच में ज्ञान की धातु सिद्ध करो और मार्ग में अपने को चुकाकर ज्ञान की मंजिल पाओ। ज्ञान किसी का सगा नही है । जो उसे कमाता है, उसी के पास वह आता है। यही मेरी शिक्षा थी और यहीं मेरी दीक्षा है।'
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दुनियादारी 🙏
🍁 दुनिया के लोग तब तक ईमानदार हैं, जब तक उन्हें बेईमानी करने का मौका नही मिलता है । 🍂
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🍁Mobile चलाना तो सीख लिया, अब कुछ देर बंद करना भी सीख लो 🍂।
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